Mirza Ghalib Ki Shayari Hindi Urdu Status
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हेलो फ्रेंड्स मेरा नाम संदीप टाक है आपका sandeeptak.com वेबसाइट पर स्वागत करता आज हम आपके साथ महान शायर Mirza Ghalib Ki Shayari Hindi Urdu Status में आपके साथ शेयर कर रहे हैं
Mirza Ghalib एक महान गजलें और शायर थे Mirza Ghalib मुगल सल्तनत के बहादुर शाह जफर के आखरी शायर गजल दरबारी थे Mirza Ghalib के गुजर जाने के 150 साल बाद भी लोग उन्हें शायरी में गजल में याद करते हैं उनकी शायरी है
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Mirza Ghalib Ki Shayari Hindi Urdu Status |
Mirza Ghalib की शायरी बच्चों के जुबान पर है भारत-पाकिस्तान सभी नागरिक मिर्जा गालिब की शायरियों से वाकिफ है Mirza Ghalib उर्दू व फारसी लैंग्वेज में शायरी करते थे
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Mirza Ghalib Ki Shayari Hindi Urdu Status
Mirza Ghalib 2 line shayri status
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !!
जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई !!
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत .
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,_
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए !!
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे !!
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर,
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में !!
Mirza Ghalib Ki Shayari
न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई !!
रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!
तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता ..
गा़लिब
तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..
गा़लिब
भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!
अब अगले मौसमों में यही काम आएगा,
कुछ रोज़ दर्द ओढ़ के सिरहाने रख लिया !!
best Mirza Ghalib Ki Shayari
वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
अफ़साना आधा छोड़ के सिरहाने रख लिया,
ख़्वाहिश का वर्क़ मोड़ के सिरहाने रख लिया !!
हम तो जाने कब से हैं आवारा-ए-ज़ुल्मत मगर,_
तुम ठहर जाओ तो पल भर में गुज़र जाएगी रात !!
है उफ़ुक़ से एक संग-ए-आफ़्ताब आने की देर,_
टूट कर मानिंद-ए-आईना बिखर जाएगी रात !!/
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ
हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है
ROMENTIC PYAR BHARI Mirza Ghalib Ki Shayari Hindi Urdu Status
इक आह-ए-ख़ता गिर्या-ब-लब सुब्ह-ए-अज़ल से,
इक दर है जो तौबा को रसाई नहीं देता
इक क़ुर्ब जो क़ुर्बत को रसाई नहीं देता,_
इक फ़ासला अहसास-ए-जुदाई नहीं देता
आज फिर पहली मुलाक़ात से आग़ाज़ करूँ,_
आज फिर दूर से ही देख के आऊँ उस को !!
ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा !!
एजाज़ तेरे इश्क़ का ये नही तो और क्या है,
उड़ने का ख़्वाब देख लिया इक टूटे हुए पर से !!
साज़-ए-दिल को गुदगुदाया इश्क़ ने_ _ _
मौत को ले कर जवानी आ गई
मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पे सदक़े,
न जफ़ा आती है जिसको न वफ़ा आती है !!
यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है,
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है !!
है और तो कोई सबब उसकी मुहब्बत का नहीं,
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है !!
की मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा,
हाए उस ज़ूद-पशीमाँ का पशीमाँ होना !! –
आता है मेरे क़त्ल को पर जोश-ए-रश्क से
मरता हूँ उस के हाथ में तलवार देख कर
करने गये थे उनसे तगाफुल का हम गिला,
की एक ही निगाह कि हम खाक हो गये !! –
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता !! –
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही
ग़ालिब
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
ग़ालिब
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
ग़ालिब
मगर लिखवाए कोई उस को खत
तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और
घरसे कान पर रख कर कलम निकले..
-मिर्ज़ा ग़ालिब
मरते है आरज़ू में मरने की_
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती ।
-मिर्ज़ा ग़ालिब
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज
पर इतना जानते है कल वो जाता था के हम निकले..
-मिर्जा ग़ालिब
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।
Dard Bhari Mirza Ghalib Ki Shayari
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन।
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।।
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना।
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।।
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़।
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है।।
बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता।
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है।।
दोस्तों यह थी मिर्जा गालिब की शायरी उम्मीद है यह जानकारी आपको पसंद आई ऐसी ही और जानकारी के लिए आप हमारे ब्लॉग पर दी गई बाकी की पोस्ट पढ़ें धन्यवाद जय हिंद जय भारत